Saturday, May 22, 2010

इसीलिए मेरी तुलना धरती से की गई है रे पुरूष !




तुमने सिर्फ़ उड़ान देखी है ............

पीड़ा नहीं देखी मेरे परों की

जो तुमने क़तर डाले


ख़ून नहीं देखा तुमने बहता हुआ

क्योंकि तुम

देखना ही नहीं चाहते दर्पण

तुम्हें तो चाहिए बस समर्पण


हर हाल में,

हर सूरत में


क्योंकि तुम शोषक हो जन्म-जन्मान्तर से

संस्कार पुराने जायेंगे नहीं

सुविचार तुम्हें भायेंगे नहीं


लेकिन मैं !

मैं तो माँ हूँ................


सब की माँ हूँ

मानव तो मानव

रब की माँ हूँ


इसलिए ममता से आकंठ लाचार हूँ........

और हर दर्द सहने के लिए तैयार हूँ


मैं दर्द बाँटती नहीं,

पी लेती हूँ

वेदना को गाती नहीं,

जी लेती हूँ

इसीलिए मेरी तुलना धरती से की गई है रे पुरूष !

और तेरी आसमान से ।


क्योंकि तू तो जब तब रो लेता है

और अपने सारे पाप धो लेता है

लेकिन मैं !

मैं वह तपस्विनी............


जिसका कोई भी क्षण पतित नहीं होता

साँस का स्पन्दन भी

धर्माचरण की लय से रहित नहीं होता

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Thursday, May 20, 2010

माँ के हाथ का खाना छप्पनभोग से भी अच्छा लगता है




बेटा
कितना भी बड़ा होजाए
माँ के सामने बच्चा लगता है
माँ के हाथ का खाना
छप्पनभोग से भी अच्छा लगता है

मैंने अपनी पत्नी से कहा भाग्यवान !
तू रोटियां मेरी माँ जैसी बना दिया कर

वो बोली
बना दूंगी ,
तू आटा अपने बाप जैसा गूँथ दिया कर

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Sunday, May 16, 2010

पीर परायी अनुभव कर ले ..इतनी तेरी बिसात कहाँ ?





अरी निर्लज्ज,

निष्ठुर और निर्योग्य रेल मन्त्री !

तू और तेरे अधीनस्थ तमाम तन्त्री

दुखी होने के बजाय पीड़ितों का दिल दुखा रहे हैं

अपनी दुर्व्यवस्थाओं को जनता की भूल बता रहे हैं


हद है

हद है

हद है


ममता बनर्जी, तेरी बेशर्मी हद पर है

गज़ब ये है कि तू अभी तक पद पर है


जनता और जन का दर्द !!!!!!!!

तू क्या जानेगी ?

जान लेती, अगर तू भी एक आध जनती...........

तेरे जने हुए के साथ ये घटना बनती...........

पीर परायी अनुभव कर ले ..इतनी तेरी बिसात कहाँ ?

और तुझे पदच्युत कर सके

मन्नूजी के नपुंसक शासन की इतनी औकात कहाँ ?


अफ़सोस.........

अफ़सोस.......

अफ़सोस........


कोई सुनने वाला नहीं है शिखंडियों की सरकार में

सब साले धूर्त और कसाई बैठे हैं दिल्ली के दरबार में